कहानी वॉचडॉग और लैपडॉग की……
कुत्तों की वफ़ादारी को लेकर महाभारत में युधिष्ठिर और उनके पालतू कुत्ते का प्रसंग काफी प्रसिद्ध है। जब युधिष्ठिर अपने सभी पांडव भाइयों और पालतू कुत्तों के साथ स्वर्ग को प्रस्थान करते हैं तो रास्ते में कई दुर्गम पड़ाव आते हैं। रास्ता जैसे-जैसे दुर्गम होता जाता है, उनके सभी भाई एक-एक कर उनका साथ छोड़ते जाते हैं। लेकिन जब वे स्वर्ग के द्वार पर पहुंचते हैं तो उनका कुत्ता अब भी उनके पीछे उनके साथ खड़ा होता है । उसकी आँखों में अब भी उतनी ही वफ़ादारी झलक रही होती है जितनी पहले, शायद पहले से भी ज्यादा। स्वर्ग का द्वारपाल कुत्ते को स्वर्ग के अंदर जाने की इजाज़त नहीं देता है। जिस कारण युधिष्ठिर द्वारपाल पर क्रोधित हो जाते हैं । युधिष्ठिर द्वारपाल से कहते हैं कि जिस दुर्गम रास्ते पर मेरे भाइयों ने मेरा साथ छोड़ दिया जिनसे मैंने सबसे अधिक प्रेम किया उस दुर्गम रास्ते पर भी मेरे इस कुत्ते ने मेरा साथ नहीं छोड़ा । यदि मेरा कुत्ता स्वर्ग में प्रवेश के योग्य नहीं है तो मुझे भी कोई अधिकार नहीं है कि मैं स्वर्ग में वास करुं। ये तो थी युधिष्ठिर और उनके पालतू कुत्ते की एक दूसरे के प्रति वफ़ादारी की कहानी। लेकिन ये कोई द्वापर युग नहीं है और यहाँ कोई युधिष्ठिर भी नहीं है। आखिर हों भी क्यों, फायदा ही क्या है युधिष्ठिर होने का , नुकसान ही है ! जब युधिष्ठिर को द्वापर में इतने कष्ट थे, ये तो कलयुग है। यहाँ तो सभी दुर्योधन बनने पर गर्व महसूस कर रहे क्योंकि इसी में फायदा है। क्योंकि अब विजय सत्य की नहीं, सत्य के नाम पर असत्य की होती है। जिसकी जीत होगी फायदा भी उसी के साथ हो लेने में होगा ।